Sunday, November 14, 2010

रिश्तों के बदलते मायने

एक दफा ट्रेन में जयपुर से घर(नागौर) जा रहा था,सामने वाली सीट पर देखा कि हैप्पी फेमिली बैठी थी, देखकर बहुत अच्छा लगा,उनसे बातों में मशगुल था,,,तभी पीछे की सीट से जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी,पता चला एक पोता अपने दादा को पानी पीते समय थोडा पानी गिर जाने पर डांट रहा था,तब ये पंक्तियाँ जेहन में आ गयी....आपके सामने रख रहा हूँ!!!!!

Southern California Photographer - Danielle Simone - babies, children, families, relationship photography

काँच की तरह टूटकर बिखरते ये रिश्ते,
कभी सुख-दुःख में साथ निभाते थे जो रिश्ते!
        चलते वक़्त जब लड़-खड़ाकर गिरते थे हम,
        तो दौड़कर गोद में उठा लेते थे वो रिश्ते!
        आज जब चलने को सहारा माँगा पिता ने,
        तो डांटकर हाथ में लाठी थमाते ये रिश्ते!
        कहने को तो था ये लाठी थमाना उन्हें,
        लेकिन असल में उम्मीदों पर लाठी बरसाते ये रिश्ते!
रात में जब प्यास लगने पर रोते,
तो नींद से उठकर पानी पिलाते वो रिश्ते!
आज अगर माँ ने पानी माँगा,
तो झल्लाकर खुद को व्यस्त बताते ये रिश्ते!
कहने को तो था ये पानी ना पिलाना माँ को,
लेकिन असल में उम्मीदों की लुटिया डुबोते ये रिश्ते!
        बचपन में साथ खेलना और झगड़कर फिर से मनाना,
        ना जाने कहाँ गुम हो गए वो रिश्ते!
        आज छोटी-छोटी बातों पर कलह करना,
        और महीनों ना बतलाते ये रिश्ते!
बहिन जब बचपन में राखी बांधती,
तो चिढ़ाकर गिफ्ट ना देते वो रिश्ते!
आज वक़्त ना होने की बात कहकर,
राखी को जंजीर बतलाते ये रिश्ते!
        दादी की गोद में सोते-सोते कहानियां  सुनना,
        और कंधो पर बिठाकर गाँव में घुमाते वो रिश्ते!
        आज अगर माँगा थोडा वक़्त पास बैठने को,
        तो सठियाया हुआ कहकर पास से गुजरते ये रिश्ते!
कहने को तो थे ये कुछ नमूने,
लेकिन असल में रिश्तों का मतलब झुठलाते ये रिश्ते!
किसी ने किया है अगर ऐसा सुलूक माँ-बाप के साथ,
 तो तैयार रहे निभाने को ऐसे रिश्ते!
       क्योंकि ऊपर वाला सब देखता है,
       और बदले में देता है हमें अपने बराबर के रिश्ते!



4 comments:

  1. डियर भरत,
    अच्छी पोस्ट है और कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं को छूती है.
    आशीष
    ---
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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  2. आपकी यह कविता केवल टिप्‍पणी करती है रास्‍ता नहीं सुझाती। दूसरी बात आप दो अलग अलग समय की बात कर रहे हैं। आज जो बच्‍चे जवान हैं, और जब वे बच्‍चे थे,दोनों समय में जमीन आसमान का अंतर है। हम यह समझना पड़ेगा। मैं यह नहीं कह रहा हूं आप मां-बाप के प्रति अपने कर्तव्‍यों से विमुख हो जाओ। लेकिन इन बातों पर विचार करते हुए आपको वास्‍तविकताओं को भी सामने रखना होगा। इसमें शिक्षा,संस्‍कार और परिस्थितियां सब कुछ होगा।

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  3. भरत जी ,
    रास्ता तो हमें खुद तय करना है ..सही गलत का ....
    आपने एक सच्चाई पेश कर दी ....
    अधिकतर रारिवारों में आज बुजुर्गों की यही दशा है ....
    कहाँ कमी है हमारे संस्कारों में ....?
    हम क्यों नहीं अपने बच्चों को बुजुर्गों का आदर करने की सीख दे पाते...
    सोचने का विषय है ....
    आपने एक घटना को अपने कवी मन की संवेदना से मूर्त रूप दिया ....
    आभार ....!!

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  4. shilp achchha hai
    bhav bhut achchha hai
    mgr aapki soch sbse achchhi hai
    bhut khoob !

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