"जख्मी दिल "
जब भी होता हूँ तनहा अकेला,
ना जाने क्यूँ उसकी याद चली आती है!
एक वो घड़ी थी उसकी बाहों ने झकड़ा था मुझे प्यार से,
और एक ये पल है जब उसकी याद सताती है!
वो रातें जब सोता था उसे निहारते हुए,
एक ये रात है जब दिल की सदायें उसे बुलाती हैं!
मैंने तो कभी ना कहा था उसे जाने को,
फिर क्यूँ वो हर बार मुझे तनहा छोड़ जाती है!
वो कैसी है किस हाल में है,
रह-रहकर ये हूक दिल में उठ आती है!
जब भी आती है उसकी तस्वीर इन आँखों के सामने,
लगता है वो खुद ही मेरे पास खड़ी मुस्कुराती है!
लेकिन जब बढ़ाता हूँ उसे छूने को हाथ अपना,
वो भी पानी के बुलबुले-सी गुम हो जाती है!
मैंने कभी ना सोचा था की मैं उसकी यादों के भी लायक हूँ,
लेकिन वो हर बार किसी बिन मांगी मुराद-सी मिल जाती है!
जब कहा था उसने कि- हम किसी और कि अमानत हैं!
तो लगा ऐसे-जैसे रात के सन्नाटे में अचानक बिजली गिर जाती है!
हमने हारकर कहा उनसे अलविदा,
जैसे ना चाहते हुए भी कोई कली किसी कि ख़ुशी के लिए टूट जाती है!
आजतक ना किया उन्होंने इज़हार-ए-मोहब्बत,
और हम हैं कि हर बार जैसे तेज हवा के बाद कोई शाख सीधी हो जाती है!!!!!!