
काँच की तरह टूटकर बिखरते ये रिश्ते,
कभी सुख-दुःख में साथ निभाते थे जो रिश्ते!
चलते वक़्त जब लड़-खड़ाकर गिरते थे हम,
तो दौड़कर गोद में उठा लेते थे वो रिश्ते!
आज जब चलने को सहारा माँगा पिता ने,
तो डांटकर हाथ में लाठी थमाते ये रिश्ते!
कहने को तो था ये लाठी थमाना उन्हें,
लेकिन असल में उम्मीदों पर लाठी बरसाते ये रिश्ते!
रात में जब प्यास लगने पर रोते,
तो नींद से उठकर पानी पिलाते वो रिश्ते!
आज अगर माँ ने पानी माँगा,
तो झल्लाकर खुद को व्यस्त बताते ये रिश्ते!
कहने को तो था ये पानी ना पिलाना माँ को,
लेकिन असल में उम्मीदों की लुटिया डुबोते ये रिश्ते!
बचपन में साथ खेलना और झगड़कर फिर से मनाना,
ना जाने कहाँ गुम हो गए वो रिश्ते!
आज छोटी-छोटी बातों पर कलह करना,
और महीनों ना बतलाते ये रिश्ते!
बहिन जब बचपन में राखी बांधती,
तो चिढ़ाकर गिफ्ट ना देते वो रिश्ते!
आज वक़्त ना होने की बात कहकर,
राखी को जंजीर बतलाते ये रिश्ते!
दादी की गोद में सोते-सोते कहानियां सुनना,
और कंधो पर बिठाकर गाँव में घुमाते वो रिश्ते!
आज अगर माँगा थोडा वक़्त पास बैठने को,
तो सठियाया हुआ कहकर पास से गुजरते ये रिश्ते!
कहने को तो थे ये कुछ नमूने,
लेकिन असल में रिश्तों का मतलब झुठलाते ये रिश्ते!
किसी ने किया है अगर ऐसा सुलूक माँ-बाप के साथ,
तो तैयार रहे निभाने को ऐसे रिश्ते!
क्योंकि ऊपर वाला सब देखता है,
और बदले में देता है हमें अपने बराबर के रिश्ते!